
सफलता के मायने
मैं अक्सर सोचता हूँ कि टॉपर होने के आखिर क्या मायने हैं? मेडिकल कॉलेज का एक विद्यार्थी था, जिसके पास एक एलबम था। उस एलबम में पहले से बारहवीं कक्षा तक की एक जैसी तस्वीरें लगी हुई थीं। सभी में वह मुस्कुराते हुए प्रथम आने का पुरस्कार ले रहा था। लेकिन, मेडिकल कॉलेज में वह कभी पहले पचास में भी नहीं रहा। और संभव है कि जितने अन्य विद्यार्थी थे, उनके पास भी ऐसे ही मिलते-जुलते एलबम रहे हों; सभी अपने-अपने स्कूल, गाँव या ज़िले के टॉपर रहे हों!
हमने देखा कि कॉलेज में ऐसा विद्यार्थी टॉप करने लग गया, जो इससे पहले एक औसत दर्जे के स्कूल में पढ़ कर धीरे-धीरे इस मंज़िल तक पहुँचा था। उसने कहा कि वह स्कूल में अच्छा था, लेकिन कभी टॉप नहीं कर सका। सिर्फ इस नए मैदान और नए माहौल में वह दूसरों से बेहतर सिद्ध हुआ। कॉलेज से निकलने के बाद उसकी स्थिति फिर से औसत हो गई। वहाँ अलग मिज़ाज के लोग बाज़ी मार गए, जो कभी टॉप करने के फेर में पड़े ही नहीं, जिन्हें दुनियादारी की बेहतर समझ थी या जिनके लिये सफलता के मायने ही कुछ और थे।
नब्बे के दशक के मशहूर गायक कुमार सानू ने पाँच बार लगातार फ़िल्मफेयर पुरस्कार जीता। वह गायकी के शहंशाह माने जाते थे। उनकी आवाज़ हर गली-कूचे, हर पान की दुकान, हर बस-टेम्पू में सुनाई देती। लेकिन, धीरे-धीरे वह गुम हो गए। फिर कभी यह पुरस्कार नहीं जीत सके। ऐसा नहीं कि उनकी आवाज़ कमज़ोर हो गई, या उनके गायकी में दम नहीं रहा। आज भी उनका अपना फ़ैन-क्लब है, लेकिन बाज़ार में उनका अवमूल्यन हो गया। ज़रूरत घटने लगी। यह किसी के साथ भी हो सकता है। दुनिया हर वक्त एक टॉपर ढूँढ रही है, दूसरे स्थान पर आना किसी को पसंद नहीं। लेकिन, हर व्यक्ति टॉप तो नहीं कर सकता। कोई यदि वहाँ पहुँच भी जाए, तो वह हमेशा इस दबाव में रहेगा कि यह उपलब्धि आखिर कब तक कायम रहेगी। उससे कहीं बेहतर स्थिति तो उनकी है जो वहाँ हैं ही नहीं, जो इस दबाव से मुक्त अपने को सँवारने में लगे हैं। जिनका एक ही प्रतिद्वंद्वी है— वह स्वयं। उनका एक ही लक्ष्य है कि खुद को अपनी वर्तमान अवस्था से बेहतर कैसे बनाएँ। उनकी प्रतिस्पर्धा दूसरों से नहीं है।
मेरी बेटी एक दिन स्कूल से आई, तो उसने कहा कि आज अर्धवार्षिक परीक्षा थी। मैं चौंक गया कि मुझे तो इसकी खबर ही न थी। उसने कहा कि उसे भी खबर नहीं थी। अब मैं और भी हैरान हुआ। उस वक्त मैं भारत से नया-नया नॉर्वे आया था और परीक्षा के महत्त्व से परिचित था। यूँ भला कैसी परीक्षा हो गई कि न विद्यार्थी को खबर है, न अभिभावक को! तैयारी का तो वक्त ही नहीं मिल सका! मैंने स्कूल जाकर शिक्षक से बात की कि कहीं कोई संप्रेषण में ग़लती तो नहीं हो गई? उन्होंने कहा, “नहीं! ऐसी कोई बात नहीं। यहाँ तो इसी तरह परीक्षा होती है। हम कोई तारीख नहीं निश्चित करते। तारीख निश्चित करने से छात्र दबाव में आ जाते हैं। कुछ छात्र इस दबाव में बेहतर कर जाते हैं, कुछ इसके उलट अपने स्तर से नीचे का प्रदर्शन दिखाते हैं।” खैर, मैंने बुझी-सी सहमति दिखाई क्योंकि मैं ऐसी शिक्षा-व्यवस्था से सशंकित था।
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उसके बाद मैं परिणाम की प्रतीक्षा करने लगा। परिणाम तो आया और मुझे दिखाया भी गया। लेकिन, यह नहीं बताया गया कि पूरी कक्षा में वह किस स्थान पर है। शिक्षक ने मुझे फिर से समझाया, “हम दूसरे विद्यार्थियों का परिणाम आपको नहीं बता सकते। इससे ईर्ष्या, अभिमान और दबाव बढ़ जाते हैं।” यह बात ग़लत न थी। अगर मेरी पुत्री कक्षा में प्रथम आती तो उसे घमंड आ सकता था, दूसरे स्थान पर आती तो ईर्ष्या, और आखिरी स्थान पर आती तो अवसाद। किंतु ऐसा भी नहीं कि तुलना नहीं हुई। उस परीक्षा और आने वाली परीक्षाओं में तुलना हुई, लेकिन स्वयं से ही।
एक व्यक्ति अपनी कमज़ोरियाँ या अपनी शक्ति जान ले, तो वह उसे नियंत्रित कर सकता है। किंतु दूसरों की शक्ति पर उसका सीधा नियंत्रण नहीं रहता। हम अपने विद्यार्थी जीवन में अक्सर यह ताक-झाँक करते रहे कि दूसरा क्या पढ़ रहा है। अगर वह फलाँ किताब पढ़ रहा है, तो हम भी पढ़ने लग गए। इससे कहीं बेहतर होता कि हम इस पर ध्यान देते कि हम क्या पढ़ रहे हैं और क्या नहीं पढ़ रहे। इसका अर्थ यह नहीं कि दूसरों का सहयोग नहीं लेना चाहिये बल्कि अवश्य लेना चाहिये। दूसरों से किताबों की जानकारी भी लेनी चाहिये। किंतु इसका ध्येय यह न हो कि हमें उसे इस प्रतिस्पर्धा में हराना है। कितना अच्छा हो कि साथ चल कर एक साथ शिखर पर पहुँचा जाए। जब दूसरों से उसके अध्ययन की जानकारी ली जाए, तो उससे भी अपना अध्ययन बाँटा जाए। एक शिक्षक भी आखिर यही चाहता है कि आखिरी बेंच पर बैठा विद्यार्थी भी उतने ही अंक लाए, जितना पहले बेंच पर बैठा विद्यार्थी।
जीवन मे सफलता के मायने सभी के लिए अलग अलग हैं । सिर्फ वही लोग सफल नहीं हैं जिनके पास धन है, दौलत है, नाम है फेम है और सम्मान है । वे लोग भी सफल हैं जो गुमनाम है, अनजान हैं, अज्ञात हैं, जिनके पास सांसारिक सम्पदा और सम्मान जैंसा कुछ नही है क्योंकि उनके लिए सफलता के मायने यही हैं । यदि कोई कहे कि आप तो असफल ब्यक्ति हैं जिंदगी में क्योंकि आप एवरेस्ट पर नही चढ़े, आप समुद्र की गहराई में नही उतरे, आप चाँद पर नही गये या वो कुछ भी जो आपने नहीं किया उसके कारण आप असफल हैं तो आप क्या कहेंगे ? कि भाई जब उस तरफ मैने कोई प्रयास ही नही किया, न कभी सोचा न विचार किया जिसका तुम जिक्र कर रहे हो तो इसमें सफलता असफलता की बात कहाँ से आ गई ? इसी तरह से यदि कोई बोले कि आप असफल हैं जिंदगी में क्योंकि आप धनी मानी ब्यक्ति नहीं हैं, आप के पास धन दौलत का अभाव है और कोई जानता भी नही आपको तो क्या यहाँ पर भी आपका वही जबाब होगा ? शायद नहीं , लेकिन होना चाहिए , क्योंकि इस तरफ भी आपने कोई खास प्रयास नही किया न सोचा न विचारा, इसलिए यहाँ भी सफलता असफलता की बात बेमानी है । मैं गरीबी दरिद्रता दयनीयता का समर्थन नही करता लेकिन किसी को असफल कहना या स्वयं को असफल मानना सही नही है , क्योंकि इस हिसाब से तो सभी ब्यक्ति असफल ही हैं अपने जीवन मे, फिर असफल ब्यक्ति का टैग लगने से आदमी हीन भावना से भर जाता है और अपना आत्मविस्वास और क्षमताएं खो देता है अपनी जिंदगी में सफल होने के बाबजूद भी । आदमी जिस तरफ सोचता है, विचारता है और प्रयास करता है उस तरफ ही तो वह सफल होगा, सब जगह तो नही ? जितनी मात्रा में प्रयास करता है उतनी मात्रा में ही तो सफल होगा, पूर्ण सफल तो नहीं ? सभी ब्यक्ति अपने अपने क्षेत्रों के सिकन्दर हैं , अपने अपने आयामों के बादशाह हैं , कोई भी किसी से जरा भी कम नहीं है सफलताओं के मामले में ।
सफलता का अर्थ है जो कुछ भी हमने चाहा वह पाया। परिणाम क्या रहा हमारी चाहतों का ? सुखद रहा या दुःखद ? यह चीज काउंट नही होती सफलता असफलता के संदर्भ में । काउंट यह होता है कि आपने जो चाहा जो माँगा जो किया भला या बुरा उसका परिणाम आपको मिला या नहीं ? हमारी असफलता भी हमारी सफलता ही है। और हम जो भी हैं, जहाँ भी हैं, जैंसे भी हैं हम सफलता की जमीं पर खड़े सफल लोग ही हैं। असफलता तो हमारी नजरों मे है, न्याय नियमों के पन्नों मे तो उसे हमारी सफलता ही लिखा जाएगा, चाहे हमें कितने भी बुरे परिणाम ही क्यूँ न मिलें हों । जिसे हम अपनी असफलता कहते हैं वह हमारी असफलता नही है बल्कि वह हमारी तात्कालिक सफलता प्राप्त करने की बाद कि स्थिति है । तो जो सबसे पहले और सबसे महत्वपूर्ण बात है वह है स्वयं को सभी सफल ब्यक्तियों की तरह सफल मानना है और स्वयं में असफलता का टैग हटाना है और हीन भावना को दूर करना है । यही आधार बनेगा सफलता का ।
सुपर – 7 इसी आधार पर लिखी गई पुस्तक है, जो बेहद कॉमन सात नियमों की चर्चा करती है । इस पुस्तक मे सात उन मुख्य बातों या कारकों का जिक्र है जो जीवन मे हमारी सफलता और असफलता को तय करते हैं । हम अक्सर इन सात बातों की अनदेखी करते हैं इसलिए हमारी यात्रा विपरीत सफलताओं की दिशा मे होने लगती है और यदि हम थोड़ा सा ध्यान रखलें इन सात बातों का तो किसी भी मन चाहे आयाम में मन चाही सफलता हासिल कर सकते हैं । इस पुस्तक में सफलता के सात महत्वपूर्ण बातों का जिक्र है ।”
सबसे पहले बात करते है “सफलता की परिभाषा” क्या है?:
सफलता (असफलता के विपरीत) एक उद्देश्य या उद्देश्य को प्राप्त करने और पूरा करने की स्थिति है। सफल होने का मतलब है वांछित दर्शन और नियोजित लक्ष्यों की प्राप्ति। इसके अलावा, सफलता एक निश्चित सामाजिक स्थिति हो सकती है जो एक समृद्ध व्यक्ति का वर्णन करती है जो अपने अनुकूल परिणाम के लिए प्रसिद्धि प्राप्त कर सकती थी। शब्दकोश निम्नलिखित के रूप में सफलता का वर्णन करता है: “धन, समृद्धि और / या प्रसिद्धि प्राप्त करना”।
तो जीवन में सफलता को कैसे परिभाषित करें?
एकमात्र व्यक्ति जो ऊपर दिए गए प्रश्न का उत्तर दे सकता है, वह आप हैं। मैं सफलता की अंतिम परिभाषा को लिखने में न तो सक्षम हूं और न ही तैयार हूं, क्योंकि यह संभव नहीं है। हर व्यक्ति जीवन में समृद्ध होने के बारे में अलग तरह से सोच रहा है और दूसरे तरीके से सफलता को परिभाषित कर रहा है, इसलिए ऐसी परिभाषा मौजूद नहीं हो सकती जो सभी के लिए उपयुक्त हो। यह बहुत महत्वपूर्ण है कि आप जानते हैं कि जीवन में सफलता को कैसे परिभाषित किया जाए! अपने जीवन में आप के लिए सामान्य रूप से क्या उपलब्धि, सफलता और समृद्धि के बारे में अपने आप को जागरूक करें। कुछ लोग शानदार कारों और विशाल हवेली के रूप में सफलता को परिभाषित कर सकते हैं, जबकि अन्य लोग अपने परिवार के साथ खुशी और खुशी से भरे जीवन को सफलता का सही अर्थ मानते हैं। एक बार जब आपको पता चल गया कि आपके लिए व्यक्तिगत रूप से क्या महत्वपूर्ण है, तो आप अपने विज़न और लक्ष्यों पर ध्यान केंद्रित करने में सक्षम हैं।
अब बात करते हैं “असफलता की परिभाषा” की:
उद्देश्य या उद्देश्यों को प्राप्त करने की कोशिश करते समय असफल होने का मतलब है असफलता का विपरीत होना। असफलता की इस नियमित परिभाषा के अलावा यह भी कहा जा सकता है कि अमीर और सफल व्यक्ति भी अपने जीवन में असफल होते हैं। बस अमीर और प्रसिद्ध और उनके सभी घोटालों, व्यसनों और आत्महत्याओं के बारे में सोचें। वे सभी असाधारण व्यक्ति थे, लेकिन उनमें से बहुत से भी अपने जीवन से बेहद नाखुश थे और सफलता का अर्थ नहीं देख पा रहे थे। धन को धन से परिभाषित नहीं किया जा सकता है, बल्कि आपके जीवन में मूल्यों के साथ है जो आपको एक खुशहाल व्यक्ति बनाते हैं, जैसे कि दोस्ती, रिश्ते और आपका परिवार।
जीवन में सफलता कैसे प्राप्त करें?
- सफल बनने की प्रक्रिया विस्तृत लक्ष्य निर्धारण के साथ शुरू होती है।
- एक रणनीति और एक योजना को परिभाषित करें कि आप अपने लक्ष्य, उद्देश्य और दृष्टि तक पहुंचने का इरादा कैसे करते हैं।
- ध्यान रखें कि सफलता के लिए उपलब्धियों की एक श्रृंखला प्राप्त करने का परिणाम है, इसलिए अपने लक्ष्यों को आसानी से उप-भागों तक पहुंचने के लिए विभाजित करना सुनिश्चित करें।
सफलता के मायने यह भी हैं कि हम किस तरह की सहजता महसूस करते हैं। सफलता एकांगी नहीं हो सकती, उसमें तो जीवन के सभी पक्ष शामिल हैं।
सफलता को दो तरह से देखा जा सकता है- बाहरी और आंतरिक। बाहरी सफलता का अर्थ कि आप अपना काम कितने अच्छे से करते हैं और उसकी वजह से आपको समाज में किस तरह की प्रतिष्ठा मिलती है। जबकि आंतरिक सफलता के मायने हैं कि किसी भी काम या इच्छा के पूरा होने पर आप उपलब्धि, संतुष्टि, पूर्णता, और निश्चितता किस तरह महसूस करते हैं।
सफलता के असल मायने क्या हो यह महत्वपूर्ण है? उसके मायने प्रशंसा होना चाहिए या फिर आंतरिक शांति और सुकून जो इस एहसास से मिलती है कि हमने अच्छा काम किया?
हम सभी के अपने अलग लक्ष्य होते हैं जो हमारी आकांक्षाओं और इच्छाओं के प्रतीक होते हैं। जब हम किसी एक इच्छा को पूरा करते हैं या किसी लक्ष्य को पाते हैं तो हम खुश और सफल महसूस करते हैं। फिर अगली इच्छा मन में पैदा होती है और हम फिर से असंतुष्ट होते हैं और फिर से काम करना शुरू करते हैं। कभी-कभार यह होता है कि हम किसी लक्ष्य तक पहुंचते हैं और जीवन में एक निराशा महसूस करते हैं और नहीं जानते कि अब क्या करना है।
सफलता के मायने यह भी हैं कि हम किस तरह की सहजता हम महसूस करते हैं। यह तब होता है जबकि हम अपने आंतरिक स्वभाव के अनुरूप रहते हैं। अगर हम जो चाहते हैं वह पाते हैं और तब भी यह लगता है कि भीतर कुछ कमी सी है तो हमारी इच्छाएं संतुष्टिदायक नहीं हैं या फिर जो साधन हमने चुने वे हमारे स्वभाव के अनुरूप नहीं थे।
मॉडर्न मैनेजमेंट महसूस करता है कि अगर कोई व्यक्ति संतुष्ट है तो उसमें आगे बढ़ने की ललक नहीं रहती है और यह कंपनी के लिए नुकदानदायक हो सकता है। यह संतुष्टि को देखने का बहुत ही नकारात्मक तरीका है। जब कोई व्यक्ति सकारात्मक रूप से संतुष्ट होता है, तो वह अपनी प्रसन्नाता और संतुष्टि को दूसरों के साथ बांटता है और दूसरों के भले के लिए भी काम करना चाहता है। महात्मा यही करते हैं। अक्सर वे अपने ज्ञान को दूसरों के साथ बांटने के लिए संसार की यात्रा करते हैं और इससे उन्हें स्वयं भी प्रसन्नाता अनुभव होती है और वे दूसरों की प्रसन्न्ता को भी बढ़ाते हैं।
हमारी हर सफलता में जीवन के सभी पक्ष शामिल होना चाहिए। वह तो संपूर्ण सफलता होना चाहिए। कुछ प्रोफेशनल्स ऐसे होते हैं जो कार्यस्थल पर तो प्रशंसा पाते हैं लेकिन पारिवारिक जीवन में वे बुरी तरह असफल रहते हैं। कुछ लोग अपने परिवार के लिए तो सोचते हैं लेकिन वे समाज की भलाई के लिए कुछ नहीं सोचते। हमें एक संपूर्ण नागरिक बनने का प्रयास करना चाहिए, जैसा कि हमसे अपेक्षा की जाती है। आम के वृक्ष के उदाहरण को ही लीजिए। आम की गुठली से वृक्ष बनता है और फिर सभी को मीठे फल देता है।
तब बीज क्या करता है? वह कुछ नहीं करता लेकिन अपने स्वभाव में बना रहता है और वह उसी रूप में संतुष्टि पाता है। इसलिए हमें अपने स्वभाव के अनुरूप ही बने रहना चाहिए और इसी में हमारी सफलता छिपी होती है। हमें सफलता को दूसरों के साथ बांटना रामचंद्रजी से सीखना चाहिए। लंका विजय से लौटने के पश्चात उनसे पूछा गया कि उन्होंने विजय किस तरह पाई तो उन्होंने उन सभी को श्रेय दिया जिन्होंने उनकी मदद की थी और साधारण वानरों की भी मुक्तकंठ से प्रशंसा की।
असल सफलता तो वही है जो दूसरों को भी प्रसन्नता दे और पूरी टीम को उसमें शामिल माने। यह एक सफल और महान लीडर की निशानी होती है। वह अपने साथ टीम को अपने साथ लेकर चलता है। जब हनुमान लंका से सीता का समाचार लेकर लौटे तो वे सीधे श्रीराम के पास नहीं गए, उन्होंने सभी वानर बांधवों को एकत्र किया और इस सफल मिशन में उन्हें शामिल किया ताकि वे भी महसूस करें कि इस सफल मिशन का वे भी एक हिस्सा थे।
आखिर लोग सफलता क्यों चाहते हैं? यह एक स्वाभाविक इच्छा है। हर कोई उत्कृष्ट बनना चाहता है, विजय पाना चाहता है, दूसरों से आगे रहना चाहता है। अगर हम इन सभी बातों को समझें तब हमारी सफलता किसी और पर निर्भर नहीं रह जाएगी या वह किसी को नीचे गिराकर आगे निकलने में नहीं रहेगी। हमारी प्रसन्नता तब दूसरों के दुख पर निर्भर नहीं करेगी। हमारी प्रसन्नता तब हमारे आनंद से ही जुड़ी होगी।
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[प्रवीण झा]
(प्रवीण झा नॉर्वे में डॉक्टर हैं तथा लोकप्रिय पुस्तक ‘कुली लाइंस’ के लेखक हैं।) |
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